डेढ़ रात का शहर

शहर,

सुनो, कुछ पूछना है?

सच बताना,

तुम ख़ुद बने, या बनाए गए हो??

परसों इतिहास पढ़ा था,

पता चला कि तुम्हारे आने के बाद

हमारे पूर्वजों की असभ्यता मिट गयी,

इतिहासकारों से कौन लड़े,

तुम ही बता दो,

बने हो या बनाए गए हो?

नहीं!! अगर तुम बने हो तो!!

बदलो ना,

पैसा है, रोशनी है,

मानव की उन्नति का मार्ग तुमसे बनता है?

सब शक्तियाँ तुममें समाहित है!!

पर फिर भी तुम निष्ठुर हो,

तुम्हारे साथ रहना कितना मुश्किल है?

बड़े महँगे हो!!

तुम में बसना नामुमकिन है?

गाँव की कोठरी वालों को,

क्या तुम बिस्तर भी नहीं दे सकते?

और अगर बनाए गए हो!!

तो बताओ किसने बनाया है?

किसने तुम्हें ऐसा बना दिया?

किसके कहने पे तुम दौड़कर रेंगते हो!!

कौन तुम्हें सिसककर हँसता छोड़ गया ?

शहर,

बोलो ना,

झूठ ही बोलो,

की चुप्पी के मायने क्या है हैं?

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Narendra Shandilya

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