खोज

Narendra Shandilya
1 min readJul 7, 2020
सबकी अपनी खोज

खोज क्या रही हो

जीवन, अंतरंग सपने
ले जाओ,
ये बिका नहीं
नहीं शून्य नहीं
प्रशस्त प्राण की परकाष्ठा

देख रही हो,
वो जो है
धर्म या अधर्म
मन का चिंतन है
उत्तरण है सूर्य का, लोम है

उठा रही हो
ये जो है
जीवन का स्तर, मृत्यु का बोझ
चरण स्पर्श , उद्योग है

खेल रही हो
वो जो नहीं है
शूक्ष्म रूप, विचित्र लोभ
विराट सोच, परलोकी जीव

आत्मसात कर रही हो
व्योम, निर्दोष
नितान्त निर्विघ्न जीवन
मै परिणाम, विजयी उम्मीद

नहीं तुम खोज रही हो
गूढ़ व्यंजन के स्वयं को
जाओ पा जाओ
सरल है
भाव, शब्दार्थ, संगत, गतिरोध

खोजो अब तुम
अहम् को, आकार निराकार
तुम प्राप्त करो अब
निररूप, निर्मल, निष्चित अंत

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Narendra Shandilya

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